Monday, March 14, 2016

अनसुनी सशक्‍त आवाज (इरोम)

जेल का एक अंधेरा कमरा ,जिसमें कैद है एक युवती। जिसे इजाजत नहीं है सुबह उठकर सूरज की पहली किरण को देखने की इजाजत नहीं है, जिस पर ईश्वर ने सभी को हक दिया है। डेमोक्रेसी ने ये हक भी उससे छीन लिया है। उसे आदेश दिया गया है वहां रहने का जहां रोशनी आने का बस एक झरोखा है। अब सवाल उठता है उसे किस गुनाह की सजा मिली है...क्या मजबूरी है। सवाल बहुत सीधे है मगर जवाब उस अंधेरे कमरे में कहीं खो गये है।

इरोम शर्मिल चानू,मणिपुर में पली बढ़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता,जिसने सन् 2000 में अपना अनशन शुरू किया। आज भी वह अनशन जारी है। इरोम आर्मस फोर्ड एक्ट को मणिपुर से हटाना चाहती है। इसमें स्पेशल पावर होते है कि किसी भी व्यकित को शक की वजह से मार दिया जा सकता है। इरोम को वो हादसा आज भी याद है, जब मणिपुर में बसस्टाप में इंतजार करते हुए 10 लोंगों को शक की वजह से मार दिया गया था। आर्मी के इसी पावर को मणिपुर से हटाये जाने के लिए इरोम अनशन पर है। यही इरोम का अपराध भी है। वह दूसरों के लिए अपनी जिन्दगी लगा रही है। लेकिन इस बात का असर किसी पर नहीं पड़ता है। क्योंकि अंधो के शहर में रोशनी करना और बहरों के शहर में संगीत का कोई मतलब नहीे होता है। इरोम की इस कोशिश को मीडिया ने भी अनशन का नाम दिया है लेकिन पुलिस ने धारा 309 के तहत आत्महत्या करने की कोशिश में हिरासत में लिया जा चुका है। इरोम का शरीर पीला पड़ चुका है,वो बेहद दुबली हो चुकी है। उनकी आखों की चमक आज भी बरकरार है।
इरोम अपनी मां से भी मिल नहीं सकती है। इसकी भी उन्हें इजाजत नहीं है। आज इरोम की मां भी उनसे मिलना नहीं चाहती है। कहीं बेटी उनके आसुओं को देखकर कमजोर न पड़ जाय। इरोम की मां का दर्द इस बात से साफ पता चलता है जब वो कहती है कि एक रात भूखे सोना कितना मुश्किल होता है। इरोम को इतने सालों से कितनी तकलीफ हो रही होगी। इरोम को नाक से लगी ड्रिप द्घारा जिन्दा रखने की खुराक पहुंचाई जाती है। इरोम को संघर्ष करते हुए 16 साल हो गये है। लेकिन इरोम की आवाज आज भी अनसुनी है। आज इरोम को मणिपुर की आयरन लेडी के रूप में जानते है, लेकिन गूगल पर। आम इंसान के कानों के आस-पास ऐसी कोई गूंज भी नहीं है।
इसका भी कारण है, इरोम का अनशन बहुत वक्त से जारी है, लेकिन इसका सही वक्त नहीं हैं। भारत की मीडिया व राजनीति के लिए सही टाइमिंग बेहद जरूरी है। वर्ड कप के दौरान बहुत सी खबरे ब्रेकिंग न्यूज नहीं बन पाती, चुनाव के दौरान ही नेताओं का समस्याओं से सरोकार होता है।
हाल ही सरकारी काबिल मंत्रियों के झुण्ड में से एक मंत्री ने कहा था कि वे बातचीत करेंगे व सहमति बनाने की जल्द ही कोशिश करेंगे, लेकिन कोई सरकार से ये पूछे कि 16 साल तक अनशन पर लगा देने के बाद सहमति पर चर्चा की जा रही है। अब क्या फैसला इरोम की अन्तिम सांस के इंतजार में रखा है। जिस देश की राष्टï्रपति महिला हो सकती है। उसी देश में एक महिला की जद्ïदोजहद के कोई मायने नहीं है। जिस देश में राजीव गांधी के हत्यारों पर माफी पर विचार किया जा सकता है। माफी की अपील की जा सकती है, उसी देश में एक महिला के अनशन पर बैठने का संघर्ष नहीं समझ आता है।

इरोम का अनशन कई बदलाव लायेगा, इरोम को न्याय भी मिलेगा, लेकिन इरोम ने जो गवांया है उसे कौन वापस दे जायेगा। आम इंसान की जिंदगी की चौखट पर खड़े होकर देखने से पता चलता है कि इरोम ने जो गवांया वो कोई नहीं लौटा सकता है।

जिम्मेदारी हमारी भी है, इरोम की मांग की सही न्याय दिलाने की। कब तक यूं ही हम सोते रहेंगे? और कब तक कोई सालों की मेहनत कर हमें जगायेगा। इरोम के साथ कई सवाल खड़े होते है जिसका जवाब नेता, अभिनेता को नहीं समाज को देना होगा।

Monday, August 26, 2013

अब नहीं संभलना ...


कई दिनों से थकान है, किसी को कहूं तो कहेगा आराम कर लो। लेकिन क्‍या बताऊं अब खुद ही उठने का दिल नहीं। बस लगता है पड़े रहने दो जस का तस। कोई आवाज भी मत देना हो सके तो कोई खैरियत भी मत पूछना। क्‍योंकि इसी वजह ने आज जिंदगी तबाह कर दी है। सोचते – सोचते कमबख्‍त थक गए हैं कि कोई अपना हो, किसी को अपना कहे। कोई फिक्र करे, कोई साथ चले। किसी को तो मेरी खामोशियों की चीख भी सुनाई दे। लेकिन कब तक मैं य‍ह बोलती रहूं। अब बस चुप और कोई आवाज नहीं, न बोलना है न सुनना। जाओ छोड़ दिया खुद को, अब नहीं संभलना।  

Sunday, August 18, 2013

वक्‍त ने मुझे तेरा दीवाना बना डाला!


माना कि बहुत मशरूफ हो तुम, फिर भी तुम्‍हें बता दूं। आज मैंने वही सफेद सलवार कमीज पहनी है, जिसे आज के दिन पहली बार तुम्‍हारे लिए पहना था, महज तीन साल पहले । लेकिन आज इस सफेद सलवार कमीज के साथ मैंने तुम्‍हारे फेवरेट नीले रंग का दुपट्टा ओढ़ा है। पता है इसे ओढ़ते ही याद आ गया वो अल्‍फाज ब्‍लू क्‍वीन, हां कई दिनों पहले यही कहकर तुमने मुझे पुकारा था। सच कहूं तो यह सिर्फ महज अल्‍फाज नहीं यह मेरे लिए दुआओं सा पाक है और असरदार भी। चाहो तो कभी देख लेना आजमाकर मुर्दा भी हो गई तो जी उठूंगी एक बार तुझसे ब्‍लू क्‍वीन की पुकार सुन कर। आज हर याद ताजा हो गई और एक फिर तुमसे इश्‍क हो गया है। न जाने यह जादू तुम्‍हारा है या मेरी कशिश कि आज वक्‍त ने मुझे तेरा दीवाना बना डाला। 

Sunday, June 2, 2013

बारिश


तपती गर्मी से निजात दिलाने के लिए मानसून ने फिर एक बार दस्‍तक दे दी। यूं लगा जैसे मुझ पर बिजली गिरी हो। तुम्‍हारे साथ बारिश की कोई याद तो नहीं जुड़ी अब तक लेकिन मेरे अंदर तमाम ख्‍वाब आज भी जिंदा है। जिनमें बारिश में भीगते हम दोनों एक हो गए हैं। तम्‍हें मालूम है एक बार फिर मैं तपती धूप में अपने ख्‍वाब तुम्‍हारे ख्‍यालों की बारिश में भीग कर लिख रही हूं। 

Tuesday, May 28, 2013

कैनवास

जिंदगी एक ऐसा कैनवास है जिस पर वक्‍त हर रंग रंगता है। लेकिन कभी- कभी हिस्‍से में बस दो रंग आते हैं सफेद और काला। मजे की बात यह है दुनिया के किसी कोने में भी इन दो रंगों को रंग में नहीं गिना जाता। इसलिए कैनवास खाली भी रह जाता है। एक ऐसे ही खाली कैनवास है कि जिंदगी को करीब से देख रही हूं। जिसमें तमाम रंगों की ख्‍वाहिश की गई थी लेकिन हिस्‍से में खाली कैनवास ही आया। खैर ऊपर वाला शायद किसी इंतजार में ही होगा या अपने पसंदीदा रंगों को भरने का इंतजार कर रहा होगा।   

Wednesday, May 1, 2013

खबर मिली थी…



खबर मिली थी तुम छोड़कर चले गए हो मुझे

यही सुन मैं तुमसे मिलने दौड़ा चला आया।

मगर राख थी बची तुम्‍हारे बदन की वहां ,

तुम्‍हारी रुखसती का खत देरी से मिला था।

तुम होते तो शामत आ जाती डाकिए की उस रोज की तरह ,

जब मेरी पहली नौकरी का खत तुम्‍हे देर से मिला था।

कान पकड़े थे डाकिए ने और कहा था,

चचा! अब ऐसा कभी नहीं होगा।

मैं भी जानता था, तुम भी जानते थे और डाकिया भी,

तुम्‍हारे लिए वो कितना अहम वक्‍त था।

आज मैं भी उसी देरी का शिकार हुआ हूं,

लेकिन तुम्‍हीं कहो अब्‍बा में किसे जाकर कहूं।

एक पल तो आया तुम्‍हे जाकर बता दूं,

डाकिया  कमबख़्त फिर कामचोरी पर उतर आया।

मगर दूजे ही पल एहसास हुआ मेरे अब्‍बा तो चले गए

जिनसे सारे जमाने की शिकायत मैं किया करता।

मुझे मालूम है झूठे ही डाटते थे तुम मेरी जिद्द पर सबको,

और मैं सब पर उस डांट का रौब जमाता फिरता।

आज फिर एक बार कह दो! अब्‍बा

तुम्‍हारे जाने की खबर झूठी है,

सच कहता हूं मैं किसी को डाटने को भी नहीं कहूंगा।

अब्‍बा! बहुत नाराज हूं आज पहली बार सच में,

क्‍यूं चले गए अकेले मुझे छोड़ के यहां।

आजतक मेरे बिना घर की दहलीज भी न लांघी तुमने,

अम्‍मी के लाख रोकने पर भी ले जाते थे मुझे उंगली पकड़ के। 

मगर आज एक बार भी ख्‍याल नहीं आया मेरा,

कैसे रहेगा ये नालायक तुम्‍हारे बिना।

जी चाहता है तुम से कई दिन बात न करूं

तूम मनाओ भी तो मुंह मोड़ लूं।

मगर अब तुम्‍हारे साथ वो वक्‍त भी रुखसत हो गया,

बस खबर मिली है, जिसे सुन मैं बुत हो गया।

Sunday, February 24, 2013

कशमकश


कभी दिल और दिमाग एक दूसरे का साथ छोड़ देते हैं। जैसे किसी पुरानी दुश्‍मनी का हिसाब बराबर करने चले आए हैं। ऐसा नहीं मंजिल अलग हो दोनों की लेकिन रास्‍ते इतने अलग हैं जैसे 36 का आकंडा हो। किसकी सुनू समझा नहीं आता और थक कर दोनों की डांट लगा चुप करा देता हूं। तभी थोड़ी देर चुप रहने का ढ़ोंग करने वाले दिल और दिमाग की बड़बडाहट फिर शुरू हो जाती है। इस बार दोनों फिर पहले से कहीं ज्‍यादा ऊर्जावान हैं, बस मौका मिले तो उठा के पटक दें। मैं भी चाहता हूं किसी एक की शिकस्‍त हो जाए। मामला आर- पार का हो जाए। रोज रोज का यह झगड़ा कम से कम बंद हो जाए। लेकिन जो भी चित होगा फर्क मुझे पडेगा। खैर बिना इमोशल हुए मुझे दोनों की जंग देखनी है, ऐसा न हो कहीं दोनों ही चकनाचूर हो जाए, और मैं दोनों की हार का जश्‍न मनाते हुए सो जाऊं।