जेल का एक अंधेरा कमरा ,जिसमें कैद है एक युवती। जिसे इजाजत नहीं है सुबह उठकर सूरज की पहली किरण को देखने की इजाजत नहीं है, जिस पर ईश्वर ने सभी को हक दिया है। डेमोक्रेसी ने ये हक भी उससे छीन लिया है। उसे आदेश दिया गया है वहां रहने का जहां रोशनी आने का बस एक झरोखा है। अब सवाल उठता है उसे किस गुनाह की सजा मिली है...क्या मजबूरी है। सवाल बहुत सीधे है मगर जवाब उस अंधेरे कमरे में कहीं खो गये है।
इरोम शर्मिल चानू,मणिपुर में पली बढ़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता,जिसने सन् 2000 में अपना अनशन शुरू किया। आज भी वह अनशन जारी है। इरोम आर्मस फोर्ड एक्ट को मणिपुर से हटाना चाहती है। इसमें स्पेशल पावर होते है कि किसी भी व्यकित को शक की वजह से मार दिया जा सकता है। इरोम को वो हादसा आज भी याद है, जब मणिपुर में बसस्टाप में इंतजार करते हुए 10 लोंगों को शक की वजह से मार दिया गया था। आर्मी के इसी पावर को मणिपुर से हटाये जाने के लिए इरोम अनशन पर है। यही इरोम का अपराध भी है। वह दूसरों के लिए अपनी जिन्दगी लगा रही है। लेकिन इस बात का असर किसी पर नहीं पड़ता है। क्योंकि अंधो के शहर में रोशनी करना और बहरों के शहर में संगीत का कोई मतलब नहीे होता है। इरोम की इस कोशिश को मीडिया ने भी अनशन का नाम दिया है लेकिन पुलिस ने धारा 309 के तहत आत्महत्या करने की कोशिश में हिरासत में लिया जा चुका है। इरोम का शरीर पीला पड़ चुका है,वो बेहद दुबली हो चुकी है। उनकी आखों की चमक आज भी बरकरार है।
इरोम अपनी मां से भी मिल नहीं सकती है। इसकी भी उन्हें इजाजत नहीं है। आज इरोम की मां भी उनसे मिलना नहीं चाहती है। कहीं बेटी उनके आसुओं को देखकर कमजोर न पड़ जाय। इरोम की मां का दर्द इस बात से साफ पता चलता है जब वो कहती है कि एक रात भूखे सोना कितना मुश्किल होता है। इरोम को इतने सालों से कितनी तकलीफ हो रही होगी। इरोम को नाक से लगी ड्रिप द्घारा जिन्दा रखने की खुराक पहुंचाई जाती है। इरोम को संघर्ष करते हुए 16 साल हो गये है। लेकिन इरोम की आवाज आज भी अनसुनी है। आज इरोम को मणिपुर की आयरन लेडी के रूप में जानते है, लेकिन गूगल पर। आम इंसान के कानों के आस-पास ऐसी कोई गूंज भी नहीं है।
इसका भी कारण है, इरोम का अनशन बहुत वक्त से जारी है, लेकिन इसका सही वक्त नहीं हैं। भारत की मीडिया व राजनीति के लिए सही टाइमिंग बेहद जरूरी है। वर्ड कप के दौरान बहुत सी खबरे ब्रेकिंग न्यूज नहीं बन पाती, चुनाव के दौरान ही नेताओं का समस्याओं से सरोकार होता है।
हाल ही सरकारी काबिल मंत्रियों के झुण्ड में से एक मंत्री ने कहा था कि वे बातचीत करेंगे व सहमति बनाने की जल्द ही कोशिश करेंगे, लेकिन कोई सरकार से ये पूछे कि 16 साल तक अनशन पर लगा देने के बाद सहमति पर चर्चा की जा रही है। अब क्या फैसला इरोम की अन्तिम सांस के इंतजार में रखा है। जिस देश की राष्टï्रपति महिला हो सकती है। उसी देश में एक महिला की जद्ïदोजहद के कोई मायने नहीं है। जिस देश में राजीव गांधी के हत्यारों पर माफी पर विचार किया जा सकता है। माफी की अपील की जा सकती है, उसी देश में एक महिला के अनशन पर बैठने का संघर्ष नहीं समझ आता है।
इरोम का अनशन कई बदलाव लायेगा, इरोम को न्याय भी मिलेगा, लेकिन इरोम ने जो गवांया है उसे कौन वापस दे जायेगा। आम इंसान की जिंदगी की चौखट पर खड़े होकर देखने से पता चलता है कि इरोम ने जो गवांया वो कोई नहीं लौटा सकता है।
जिम्मेदारी हमारी भी है, इरोम की मांग की सही न्याय दिलाने की। कब तक यूं ही हम सोते रहेंगे? और कब तक कोई सालों की मेहनत कर हमें जगायेगा। इरोम के साथ कई सवाल खड़े होते है जिसका जवाब नेता, अभिनेता को नहीं समाज को देना होगा।
इरोम शर्मिल चानू,मणिपुर में पली बढ़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता,जिसने सन् 2000 में अपना अनशन शुरू किया। आज भी वह अनशन जारी है। इरोम आर्मस फोर्ड एक्ट को मणिपुर से हटाना चाहती है। इसमें स्पेशल पावर होते है कि किसी भी व्यकित को शक की वजह से मार दिया जा सकता है। इरोम को वो हादसा आज भी याद है, जब मणिपुर में बसस्टाप में इंतजार करते हुए 10 लोंगों को शक की वजह से मार दिया गया था। आर्मी के इसी पावर को मणिपुर से हटाये जाने के लिए इरोम अनशन पर है। यही इरोम का अपराध भी है। वह दूसरों के लिए अपनी जिन्दगी लगा रही है। लेकिन इस बात का असर किसी पर नहीं पड़ता है। क्योंकि अंधो के शहर में रोशनी करना और बहरों के शहर में संगीत का कोई मतलब नहीे होता है। इरोम की इस कोशिश को मीडिया ने भी अनशन का नाम दिया है लेकिन पुलिस ने धारा 309 के तहत आत्महत्या करने की कोशिश में हिरासत में लिया जा चुका है। इरोम का शरीर पीला पड़ चुका है,वो बेहद दुबली हो चुकी है। उनकी आखों की चमक आज भी बरकरार है।
इरोम अपनी मां से भी मिल नहीं सकती है। इसकी भी उन्हें इजाजत नहीं है। आज इरोम की मां भी उनसे मिलना नहीं चाहती है। कहीं बेटी उनके आसुओं को देखकर कमजोर न पड़ जाय। इरोम की मां का दर्द इस बात से साफ पता चलता है जब वो कहती है कि एक रात भूखे सोना कितना मुश्किल होता है। इरोम को इतने सालों से कितनी तकलीफ हो रही होगी। इरोम को नाक से लगी ड्रिप द्घारा जिन्दा रखने की खुराक पहुंचाई जाती है। इरोम को संघर्ष करते हुए 16 साल हो गये है। लेकिन इरोम की आवाज आज भी अनसुनी है। आज इरोम को मणिपुर की आयरन लेडी के रूप में जानते है, लेकिन गूगल पर। आम इंसान के कानों के आस-पास ऐसी कोई गूंज भी नहीं है।
इसका भी कारण है, इरोम का अनशन बहुत वक्त से जारी है, लेकिन इसका सही वक्त नहीं हैं। भारत की मीडिया व राजनीति के लिए सही टाइमिंग बेहद जरूरी है। वर्ड कप के दौरान बहुत सी खबरे ब्रेकिंग न्यूज नहीं बन पाती, चुनाव के दौरान ही नेताओं का समस्याओं से सरोकार होता है।
हाल ही सरकारी काबिल मंत्रियों के झुण्ड में से एक मंत्री ने कहा था कि वे बातचीत करेंगे व सहमति बनाने की जल्द ही कोशिश करेंगे, लेकिन कोई सरकार से ये पूछे कि 16 साल तक अनशन पर लगा देने के बाद सहमति पर चर्चा की जा रही है। अब क्या फैसला इरोम की अन्तिम सांस के इंतजार में रखा है। जिस देश की राष्टï्रपति महिला हो सकती है। उसी देश में एक महिला की जद्ïदोजहद के कोई मायने नहीं है। जिस देश में राजीव गांधी के हत्यारों पर माफी पर विचार किया जा सकता है। माफी की अपील की जा सकती है, उसी देश में एक महिला के अनशन पर बैठने का संघर्ष नहीं समझ आता है।
इरोम का अनशन कई बदलाव लायेगा, इरोम को न्याय भी मिलेगा, लेकिन इरोम ने जो गवांया है उसे कौन वापस दे जायेगा। आम इंसान की जिंदगी की चौखट पर खड़े होकर देखने से पता चलता है कि इरोम ने जो गवांया वो कोई नहीं लौटा सकता है।
जिम्मेदारी हमारी भी है, इरोम की मांग की सही न्याय दिलाने की। कब तक यूं ही हम सोते रहेंगे? और कब तक कोई सालों की मेहनत कर हमें जगायेगा। इरोम के साथ कई सवाल खड़े होते है जिसका जवाब नेता, अभिनेता को नहीं समाज को देना होगा।